shani-maharaj-kapasan-jila-chhittorgarh.jpg

शनि जयंती 2021

#shani jayanti 2021#2021 में शनि जयंती कब है? #शनि जयंती 2021

चेत्र शुक्ल प्रतिपदा से शुरू होने वाले हिन्दू नववर्ष के ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को भगवान श्री शनिदेव का जन्मोत्सव #शनि जयंती 2021 मनाया जाता है। जिसे #शनि जयंती कहते हैं जो इस बार 10 जून 2021 को है। माना जाता है की इस विशेष दिन #भगवान शनिदेव की पूजा करने से #शनि की साढ़ेसाती, #ढैय्या और #महादशा से मुक्ति मिलने का मार्ग खुल जाता है । इस दिन #शनि चालीसा और #शनि स्त्रोत का पाठ करना भी काफी फलदायी माना गया है। इस विशेष दिन पर, विभिन्न स्थानों पर, महिलाएं #वट सावित्री व्रत भी रखती हैं।

भगवान शनि काफी न्यायप्रिय माने जाते हैं और जातक को उसके कर्मों का फल देते हैं। इसलिए शनि महाराज को #न्याय का देवता #God of Justice भी कहा जाता है. शनि महाराज इन्सान को उसके कर्मो के अनुसार सफलता देते है,यदि इन्सान लगनशील मेहनती और ईमानदारी से कार्य करने वाला होता है तो उसको शनि महाराज से डरने की कोई आवश्यकता नहीं है . शनि महाराज उसको बेवजह परेशान नहीं करते है .  

शनिदेव पर तेल चढ़ाने की परंपरा

शनिदेव पर तेल चढ़ाने की परंपरा शनिदेव दक्ष प्रजापति (कुछ विद्वान् विश्वकर्मा जी की पुत्री भी बताते है ) की पुत्री संज्ञा देवी (छाया) और सूर्यदेव के पुत्र हैं। शनि को नवग्रहों में सबसे अधिक भयभीत करने वाला ग्रह माना गया है। शनि ग्रह का प्रभाव एक राशि पर ढाई वर्ष और साढ़े साती के रूप में लंबी अवधि तक रहता है। शनिदेव की गति अन्य सभी ग्रहों से मंद होने का कारण इनका लंगड़ाकर चलना है।

शनिदेव लंगड़ाकर क्यों चलते हैं? इसके संबंध में सूर्यतंत्र में एक कथा है-एक बार सूर्य देव का तेज सहन न कर पाने की वजह से संज्ञा देवी ने अपने शरीर से अपने जैसी ही एक प्रतिमूर्ति तैयार की और उसका नाम स्वर्णा रखा। उसे आज्ञा दी कि तुम मेरी अनुपस्थिति में मेरी सारी संतानों की देखरेख करते हुए सूर्य देव की सेवा करो और पत्नी सुख भोगो। ये आदेश देकर वह अपने पिता के घर चली गई। स्वर्णा ने भी अपने आप को इस तरह ढाला कि सूर्य देव भी यह रहस्य न जान सके। इस बीच सूर्य देव से स्वर्णा को पांच पुत्र और दो पुत्रियां हुई। स्वर्णा अपने बच्चों पर अधिक और संज्ञा की संतानों पर कम ध्यान देने लगी।

एक दिन संज्ञा (छाया) के पुत्र शनि को तेज भूख लगी, तो उसने स्वर्णा से भोजन मांगा तब स्वर्णा ने कहा कि अभी ठहरो, पहले मैं भगवान् का भोग लगा लूं और तुम्हारे छोटे भाई-बहनों को खिला दूं, फिर तुम्हें भोजन दूंगी। यह सुनकर शनि को क्रोध आ गया और उन्होंने माता को मारने के लिए अपना पैर उठाया, तो स्वर्णा ने शनि को श्राप दिया कि तेरा पांव अभी टूट जाए। माता का श्राप सुनकर शनिदेव डरकर अपने पिता के पास गए और सारा किस्सा कह सुनाया। सूर्यदेव तुरंत समझ गए कि कोई भी माता अपने पुत्र को इस तरह का शाप नहीं दे सकती। इसलिए उनके साथ उनकी पत्नी नहीं, कोई और है। सूर्य देव ने क्रोध में आकर पूछा कि ‘बताओ तुम कौन हो?’ सूर्य का तेज देखकर स्वर्णा घबरा गई और सारी सच्चाई उन्हें बता दी। तब सूर्यदेव ने शनि को समझाया कि स्वर्णा तुम्हारी माता नहीं है, लेकिन मां समान है।

इसलिए उनका दिया शाप व्यर्थ तो नहीं होगा, परंतु यह इतना कठोर नहीं होगा कि टांग पूरी तरह से अलग हो जाए। हां, तुम आजीवन एक पांव से लंगड़ाकर चलते रहोगे।

शनिदेव पर तेल क्यों चढ़ाया जाता है? – शनिदेव पर तेल चढ़ाने के संबंध में आनंद रामायण में एक कथा का उल्लेख मिलता है की जब भगवान् राम की सेना ने सागर सेतु का निर्माण कर लिया, तब राक्षसों से इसको बचाने के लिए पवनसुत हनुमान को उसकी देखभाल की पूरी जिम्मेदारी सौंपी गई।

एक दिन जब बजरंग बलि हनुमान जी महाराज शाम के समय अपने इष्टदेव भगवन श्री राम के ध्यान में मग्न थे, तभी सूर्य पुत्र शनि महाराज ने अपना काला कुरूप चेहरा बनाकर क्रोधपूर्वक कहा-‘हे | वानर ! मैं देवताओं में शक्तिशाली शनि हूं। सुना है, तुम बहुत बलशाली हो। आंखें खोलो और मुझसे युद्ध करो, मैं तुमसे युद्ध करना चाहता हूं।’ इस पर हनुमान जी महाराज ने विनम्रतापूर्वक कहा-‘इस समय में अपने प्रभु श्रीराम का ध्यान कर रहा हूँ। आप मेरी पूजा में विघ्न मत डालिए। आप मेरे आदरणीय है कृपा करके यहां से चले जाइए।

जब शनि महाराज लड़ने पर ही उतर आए, तो हनुमान जी महाराज ने शनि देव को अपनी पूंछ में लपेटना शुरू कर दिया। फिर उसे कसना प्रारंभ कर दिया। जोर लगाने पर भी शनि उस बंधन से मुक्त न होकर पीड़ा से व्याकुल होने लगे। हनुमान जी ने फिर सेतु की परिक्रमा शुरू कर शनि देव के घमंड को तोड़ने के लिए पत्थरों पर पूंछ को झटका दे-दे कर पटकना शुरू कर दिया। इससे शनि का शरीर लहूलुहान हो गया, जिससे उनकी पीड़ा बढ़ती गई। तब शनिदेव ने हनुमान जी से प्रार्थना की कि मुझे बंधन मुक्त कर दीजिए मैं अपने अपराध की सजा पा चुका हूं। फिर मुझसे ऐसी गलती नहीं होगी।

इस पर हनुमान जी बोले-मैं तुम्हें तभी छोडूंगा, जब तुम मुझे वचन दोगे कि श्रीराम के भक्त को कभी परेशान नहीं करोगे। यदि तुमने ऐसा किया, तो मैं तुम्हें कठोर दंड दूंगा।’ शनि ने गिड़गिड़ाकर कहा-मैं वचन देता हूं कि कभी भूलकर भी आपके और श्रीराम के भक्त की राशि पर नहीं आऊंगा। आप मुझे छोड़ दें। तब हनुमान ने शनिदेव को छोड़ दिया। फिर हनुमान जी से शनिदेव ने अपने घावों की पीड़ा मिटाने के लिए तेल मांगा। हनुमान् ने जो तेल दिया, उसे घाव पर लगाते ही शनिदेव की पीड़ा मिट गई। उसी दिन से शनिदेव को तेल चढ़ता है, जिससे उनकी पीड़ा शांत हो जाती है और वे प्रसन्न हो जाते हैं।

शनि मंत्र

ऊँ प्रां प्रीं प्रौं सः शनये नमः।, ऊँ शं शनैश्चाराय नमः।

#भानपुरा में शनि देव का मंदिर नगर के बस स्टेंड से पश्चिम की और महादेव के रस्ते से पहले आने वाले रेवा पुल पर है . जो की रेवा गार्डन से पहले आता है . इसके आलावा भगवन शनिदेव का एक और मंदिर भानपुरा से दुधाखेडी माताजी मंदिर जाते समय दुधाखेडी माताजी चोराहा पर भी स्तिथ है . भानपुरा मंदसौर मुख्य मार्ग पर यह स्तिथ है .

श्री शनिदेव चालीसा

जय जय श्री शनि देव प्रभु, सुनहु विनय महाराज। करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज॥

जयति जयति शनिदेव दयाला। करत सदा भक्तन प्रतिपाला॥1॥

चारि भुजा, तनु श्याम विराजै। माथे रतन मुकुट छबि छाजै॥2॥

परम विशाल मनोहर भाला। टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला॥3॥

कुण्डल श्रवण चमाचम चमके। हिय माल मुक्तन मणि दमके॥4॥

कर में गदा त्रिशूल कुठारा। पल बिच करैं अरिहिं संहारा॥5॥

पिंगल, कृष्णो, छाया नन्दन। यम, कोणस्थ, रौद्र, दुखभंजन॥6॥

सौरी, मन्द, शनी, दश नामा। भानु पुत्र पूजहिं सब कामा॥7॥

जा पर प्रभु प्रसन्न ह्वैं जाहीं। रंकहुँ राव करैं क्षण माहीं॥8॥

पर्वतहू तृण होई निहारत। तृणहू को पर्वत करि डारत॥9॥

राज मिलत बन रामहिं दीन्हयो। कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हयो॥10॥

बनहूँ में मृग कपट दिखाई। मातु जानकी गई चुराई॥11॥

लखनहिं शक्ति विकल करिडारा। मचिगा दल में हाहाकारा॥12॥

रावण की गति-मति बौराई। रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई॥13॥

दियो कीट करि कंचन लंका। बजि बजरंग बीर की डंका॥14॥

नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा। चित्र मयूर निगलि गै हारा॥15॥

हार नौलखा लाग्यो चोरी। हाथ पैर डरवायो तोरी॥16॥

भारी दशा निकृष्ट दिखायो। तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो॥17॥

विनय राग दीपक महं कीन्हयों। तब प्रसन्न प्रभु ह्वै सुख दीन्हयों॥18॥

हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी। आपहुं भरे डोम घर पानी॥19॥

तैसे नल पर दशा सिरानी। भूंजी-मीन कूद गई पानी॥20

श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई। पारवती को सती कराई॥21॥

तनिक विलोकत ही करि रीसा। नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा॥22॥

पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी। बची द्रौपदी होति उघारी॥23॥

कौरव के भी गति मति मारयो। युद्ध महाभारत करि डारयो॥24॥

रवि कहँ मुख महँ धरि तत्काला। लेकर कूदि परयो पाताला॥25॥

शेष देव-लखि विनती लाई। रवि को मुख ते दियो छुड़ाई॥26॥

वाहन प्रभु के सात सुजाना। जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना॥27॥

जम्बुक सिंह आदि नख धारी। सो फल ज्योतिष कहत पुकारी॥28॥

गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं।हय ते सुख सम्पति उपजावैं॥29॥

गर्दभ हानि करै बहु काजा। सिंह सिद्धकर राज समाजा॥30॥

जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै। मृग दे कष्ट प्राण संहारै॥31॥

जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी।चोरी आदि होय डर भारी॥32॥

तैसहि चारि चरण यह नामा।स्वर्ण लौह चाँदी अरु तामा॥33॥

लौह चरण पर जब प्रभु आवैं।धन जन सम्पत्ति नष्ट करावैं॥34॥

समता ताम्र रजत शुभकारी।स्वर्ण सर्व सर्व सुख मंगल भारी॥35॥

जो यह शनि चरित्र नित गावै। कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै॥36॥

अद्भुत नाथ दिखावैं लीला।करैं शत्रु के नशि बलि ढीला॥37॥

जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई।विधिवत शनि ग्रह शांति कराई॥38॥

पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत। दीप दान दै बहु सुख पावत॥39॥

कहत राम सुन्दर प्रभु दासा। शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा॥40॥

दोहा

पाठ शनिश्चर देव को, की हों ‘भक्त’ तैयार।

करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार॥

shani dev mantra #shani dev ki aarti #shani dev chalisa #shani dev story #shani dev and hanuman ji #shani dev father name #shani dev in hindi #shani dev ji ki chalisa #shani dev ji ki katha #jai shani dev chalisa #shani dev ki mahima

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top